Sunday 1 December 2013

क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों कि बातें ..


लेखक के अनुभव से  लिखी ये लाईनें उनके लिए है जो सपने तो बड़े - बड़े देखते हैं लेकिन मंजिल को खोजते हुए राहें भूल जाते हैं या फिर खुद को ही भूल जातें है ,




जीवन का एक अंग है जो ,
जीवन का एक  रंग है जो ,
हर समय की रफ़्तार है जो ,
हर पल में गिरफ्तार है जो ,
क्या तुम  नहीं बुनोगे सपनों कि कुछ रातें ,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों कि बातें ................//


किताबों में बीते कल  की कहानी है ,
किताबों से हर घड़ी को जानी हैं ,
किताबों में हर इतिहास के पन्ने हैं ,
किताबों से हर यादें भी रंग में हैं .
क्या तुम नहीं रंगोगे कुछ पल भी तुम्हारे ,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों कि बातें ................//


किताबों में कुछ हँसी कुछ काँटे हैं ,
किताबॉ से इक सपना लिए हर आँखें हैं ,
सपनों कि परछाई में एक ख्वाबों कि मंजिल  हैं ,
खोजते हो निगाहों में कोई राह दिखायेगा ,
इन किताबों के पन्नों में  हर मंजिल कि राहें हैं ,
क्या तुम नहीं चुनोगे अपनी मंजिल कि  राहें ,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों कि बातें .........................//


जिंदगी को अब मोड़ दो मंजिलो कि राहों में,
हर मुश्कान तुम्हारी है ,हर लम्हो कि बाहों में ,
बुराईयां तो जमकर है सोचना क्या पलभर है, 
हमारा कल तो हमसे है ये जमाना भी कलसे है ,
हरिकेश साथी है सफ़र जिंदगी के बहारों का, 
हर समय इक है नदी जिंदगी के किनारों का,
क्या तुम भी नहीं बदलोगे इन गरीबों कि रातें ,
क्या तुम नहीं सुनोगे इन किताबों कि बातें .........................//

क्या तुम नहीं सुनोग   ................
                                                    इन किताबों कि बातें .........................//






लेखक .....................

हरिकेश सिंह " अकेला " 


Sunday 13 October 2013

प्यासी हुयी है ज़िन्दगी अंजाम मांगती है ....॥

जज़्बात ज़िन्दगी का इन्कलाब मांगता है ,
बीती कहानियों का हिसाब मांगता है ,
इंसान हो तुम यारों इंसानियत तो समझो ,
आवाज मंजिलों का बेहिसाब मांगता है  ....॥  


डगर - डगर है आँधी , है  तूफान आनेवाला ,
समय का ये तबाही , है उमड़ के आने वाला ,
सुलग रही है ख्वाहिश, कहीं  धुआं नजर है आया ,
अगर आग है कही तो तुम जज़्बात ना  छुपाना ...॥ 


हरिकेश का सफ़र है ,पर तुम भी तो हो साथी ,
रात हो गयी है , तो  क्या दीप के हो बाती ,
पहचान तो लो खुद को, हो समय की इक रवानी ,
अहसास है लबों पे और  आँखों में ग़म का पानी ....॥ 


कटी पतंग की डोरी ,  है हाथों में तेरी आयी, 
रफ़्तार आँधियों का इक उडान मांगती है,
वो देख हरिकेश मंजिल रोशनी लिए खड़ी है, 
ना रुक अब किसी से, ना झुक अब किसी से, 
तेरी प्यासी हुयी है ज़िन्दगी अंजाम मांगती है ....॥ 



........................ लेखक 
            
 हरिकेश सिंह  " अकेला "
harikeshgt@yahoo.com

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