Sunday 13 October 2013

प्यासी हुयी है ज़िन्दगी अंजाम मांगती है ....॥

जज़्बात ज़िन्दगी का इन्कलाब मांगता है ,
बीती कहानियों का हिसाब मांगता है ,
इंसान हो तुम यारों इंसानियत तो समझो ,
आवाज मंजिलों का बेहिसाब मांगता है  ....॥  


डगर - डगर है आँधी , है  तूफान आनेवाला ,
समय का ये तबाही , है उमड़ के आने वाला ,
सुलग रही है ख्वाहिश, कहीं  धुआं नजर है आया ,
अगर आग है कही तो तुम जज़्बात ना  छुपाना ...॥ 


हरिकेश का सफ़र है ,पर तुम भी तो हो साथी ,
रात हो गयी है , तो  क्या दीप के हो बाती ,
पहचान तो लो खुद को, हो समय की इक रवानी ,
अहसास है लबों पे और  आँखों में ग़म का पानी ....॥ 


कटी पतंग की डोरी ,  है हाथों में तेरी आयी, 
रफ़्तार आँधियों का इक उडान मांगती है,
वो देख हरिकेश मंजिल रोशनी लिए खड़ी है, 
ना रुक अब किसी से, ना झुक अब किसी से, 
तेरी प्यासी हुयी है ज़िन्दगी अंजाम मांगती है ....॥ 



........................ लेखक 
            
 हरिकेश सिंह  " अकेला "
harikeshgt@yahoo.com

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