कहीं ख़ुशी मिली तो उधार दे दिया ,
किसी को रोंशनी का चिराग दे दिया .
वो भी एक फरिस्ता था पर मुझसा तो नहीं ,
हमने तो ज़िन्दगी भी किसी को दान कर दिया ,
अनजान अजनबी हूँ , इन खामोश रास्तों का .
जज्बात जिंदगी हूँ , इन बदनाम अहटों का,
कहीं किरण मिली तो अहसास हूँ डगर का,
नादान तो नहीं है ,पहचान हूँ हर कल का .
![]() |
--------- हरिकेश सिंह " अकेला " https://www.harikeshakela.blogspot.com |
No comments:
Post a Comment