अपना समाज
यहाँ जातिवाद , धर्मवाद है ,
लोकवाद है , कर्मवाद है ,
क्या ऐसा भी होता समाज है,,,,,,//
ऊँच - नींच है , भेदभाव है ,
द्वेष - भाव है , क्लेश - भाव है ,
लगा रहा यहाँ कोई दाव है ,
क्या ऐसा प्रेम का होता भाव है,,,,,,, //
एक छोटा है , एक खोता है ,
खा - पी कर कोई मोटा है ,
किसी का न कोई सम्मान है ,
क्या इतना भी होता अभिमान है,,,,,,,//
लूट - पाट है , मार - काट है ,
बुराइयों का यहाँ राज है ,
नेता सब तोड़ते यहाँ खाट है ,
लगता उनको वहीँ मजा है ,
पर क्या इन गरीबों की यहि सजा है ,,,,,,//
चारा घोटाला है , धारा घोटाला है ,
जो देख रहे हो वो भी घोटाला है ,
ना देखा जो वो भी घोटाला है ,
ये नेतावो का ही छलावा है,,,,,,,,//
आज करेंगे , कल करेंगे ,
विकाश के लिए हम मर मिटेंगे ,
यही कह के हमें वर्षों से टाला है ,
क्या भारत में इतना ठाला है,,,,,,,//
कोई आगे है , कोई पीछे है ,
कोई तेज है , कोई धीमे है ,
गुनाहों के घेरे में कोई छिपे है ,
क्या हमलोग इतने पिछे है ,,,,,//
कोई इंसाफ के लिए वर्षों से हुजुर है ,
कोई मुकद्दर से हरपाल मजबूर है ,
कानून की निगाहों से कोई दूर है ,
क्या इन्साफ का यही दस्तूर है,,,,,,,//
नया नियम रोज होता पास है ,
बात - बात पर होता विवाद है ,
पहले देखते जो आस - पास है ,
दूर वालो का होता नास है ,
क्या लोकतंत्र की यही आस है,,,,,,, //
आदमियत में यहाँ गर्क है ,
प्रेम भाव में यहाँ फर्क है ,
कोई नहीं बनता किसी का है सहारा ,
फिर कैसे बने कोई किसी का प्यारा ,,,,,,,,//
सब तो करते नेतावो पर विश्वास है ,
वो देश के हमारे पालनहार है ,
जो संसद में समय करते बेकार है ,
ब्यर्थ बैठ पढते नमाज है ,,,,,//
हर किसी को सहारा चाहिए ,
तो कौन बनेगा गाँधी , सुभाष ,
आँख खोल ऐ कल के चिराग ,
करना है कोई नव - निर्माड ,
आदत मत बनाना इसको यह हरिकेश इस दिल का आगाज है ,
जिसे देखते हम दूर से है पास का भी तो अपना ही समाज है,,,,,//
लेखक ...........
हरिकेश सिंह " अकेला "
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