Tuesday 25 June 2013

ये रेत का मंजर है वो आगे है जिंदगानी .....



किसी  की  है  कहानी , किसी  का  है ज़माना ,
आँखों में जो रोंशनि  है , उसी  का  है  फशाना ,
ढुडता   हर  डगर  है,  मेरा   ये  दिल  आशिकाना ,
कुछ दूर चलके ,मिली है  अभी दरिया बाकि है वो किनारा . ........//

जला   दो  ये  रवानी , लुटा  दो   ये   जवानी ,

मिटा  दो  सबकी यादे , बन  जाए नयी कहानी ,
जंजीर  में  बंधे  हो , ये दीवार  गिरा   के  देखो ,
ये   रेत  का  मंजर  है  वो  आगे   है  जिंदगानी .............//
 
 लेखक .......हरिकेश सिंह " अकेला ".
                                                      www.harikeshakela.blogspot.com

Tuesday 18 June 2013

( सराफत को कमजोरी न समझो ! )

बेस्ट बस के लेडी सीट पर ,बैठी थी इक भारी माल ,
एक कुवांरा  बुरे नैनो से देख रहा था उसे आखें  फार ,
पीछे मै  था, आगे वो था, वो टपोरी था और  मै सरीफ ,
वो पीछे से घिसक - घिसक  कर जा रहा था उसके करीब,,,,,,,,,,,,//

भीड़ - भाड़  भी जोरो की थी ब्रेक ड्राईवर की थी कमान ,
आईटम  तो थी बहुत मगर हट के  थी कुछ वो सामान ,
जब गाडी की चाल बिगड़ती लड़की अपनी सीट पकड़ती ,
जब भी कोई लाईन मरता आँखे झुकाकर वो सर्माती ,,,,,,,,,,,,,,,,,/

उस लडके ने जब पर्पोज किया तब लड़की ने इग्नोर किया ,
जब  बेसरम  ने हाथ पकड़कर किस्स उसे बड़ा जोर किया ,
तब  बड़े तमाचे पड़े  हो  भैया बेचारा पीटा  बड़ा घोर गया ,
टांग हाथ सब टूट गए, भागकर वो अपने  घर की ओर गया  ,,,,,,,,,,,,,//

अगले स्टाप पर वो उतर गयी , निगाहें रुकी - सी रह गयी ,
सबने ही थे बड़े  मजे लिए ,  तो  थे  हम भी कुछ कम नहीं ,
साम को जब मैं वापस आया बोला जाने कहा की है पर लड़की अच्छी थी ,
तब  सुनकर दोस्त बोला अरे पागल वो तो अपने बाजुवाली की बच्ची थी ,,,,,,,,,,,,,,,,//
                                                                    
                                                    -------------- ( सराफत को कमजोरी न समझो !  )


    लेखक ... हरिकेश  सिंह  " अकेला  "
                            www.harikeshakela.blogspot.com 

                       

( सराफत को कमजोरी न समझो ! )

                   

बेस्ट बस के लेडी सीट पर ,बैठी थी इक भारी माल ,
एक कुवांरा  बुरे नैनो से देख रहा था उसे आखें  फार ,
पीछे मै  था, आगे वो था, वो टपोरी था और  मै सरीफ ,
वो पीछे से घिसक - घिसक  कर जा रहा था उसके करीब,,,,,,,,,,,,//

भीड़ - भाड़  भी जोरो की थी ब्रेक ड्राईवर की थी कमान ,
आईटम  तो थी बहुत मगर हट के  थी कुछ वो सामान ,
जब गाडी की चाल बिगड़ती लड़की अपनी सीट पकड़ती ,
जब भी कोई लाईन मरता आँखे झुकाकर वो सर्माती ,,,,,,,,,,,,,,,,,/

उस लडके ने जब पर्पोज किया तब लड़की ने इग्नोर किया ,
जब  बेसरम  ने हाथ पकड़कर किस्स उसे बड़ा जोर किया ,
तब  बड़े तमाचे पड़े  हो  भैया बेचारा पीटा  बड़ा घोर गया ,
टांग हाथ सब टूट गए, भागकर वो अपने  घर की ओर गया  ,,,,,,,,,,,,,//

अगले स्टाप पर वो उतर गयी , निगाहें रुकी - सी रह गयी ,
सबने ही थे बड़े  मजे लिए ,  तो  थे  हम भी कुछ कम नहीं ,
साम को जब मैं वापस आया बोला जाने कहा की है पर लड़की अच्छी थी ,
तब  सुनकर दोस्त बोला अरे पागल वो तो अपने बाजुवाली की बच्ची थी ,,,,,,,,,,,,,,,,//
                                                                    
                                                    -------------- ( सराफत को कमजोरी न समझो !  )



                                 लेखक ... हरिकेश  सिंह  " अकेला  "
                             www.harikeshakela.blogspot.com 

Wednesday 12 June 2013

ये जवानी कि किताब है पढ़ले और भटकना छोड़ दे !




कहते  है  सभी कि  हरिकेश अब तो बचपना छोड़ दे ,
ये  जवानी  कि  किताब है पढ़ले और भटकना छोड़ दे ,
किसी मौसम का इन्तेजार न कर, हवाओं  का रुख मुड  जायेगा ,
जो एक बूंद है गिरी सम्हाल ले उसे, तेज बारिस  में मिल जायेगा,,,,,//


आज अचानक इन निगाहों में कोई अपना कहा से आ गया ,
पहचान ले जरा करीब से क्या कोई सपना कहीं से आ गया ,
क्या आवाज है ये प्यार की जो जीवन में  ज्योति  बनके आ रही ,
या कोई अहसास है बस, जो ख़ामोशी से मेरी आरज़ू बनके बहला रही,,,,,,//


                         
                                     
    

 -----------  हरिकेश सिंह  "  अकेला  "
       www.harikeshakela.blogspot.com