Wednesday 12 June 2013

ये जवानी कि किताब है पढ़ले और भटकना छोड़ दे !




कहते  है  सभी कि  हरिकेश अब तो बचपना छोड़ दे ,
ये  जवानी  कि  किताब है पढ़ले और भटकना छोड़ दे ,
किसी मौसम का इन्तेजार न कर, हवाओं  का रुख मुड  जायेगा ,
जो एक बूंद है गिरी सम्हाल ले उसे, तेज बारिस  में मिल जायेगा,,,,,//


आज अचानक इन निगाहों में कोई अपना कहा से आ गया ,
पहचान ले जरा करीब से क्या कोई सपना कहीं से आ गया ,
क्या आवाज है ये प्यार की जो जीवन में  ज्योति  बनके आ रही ,
या कोई अहसास है बस, जो ख़ामोशी से मेरी आरज़ू बनके बहला रही,,,,,,//


                         
                                     
    

 -----------  हरिकेश सिंह  "  अकेला  "
       www.harikeshakela.blogspot.com 








1 comment:

  1. many good blogs use this style, as do many good novelists

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