कहते है सभी कि हरिकेश अब तो बचपना छोड़ दे ,
ये जवानी कि किताब है पढ़ले और भटकना छोड़ दे ,
किसी मौसम का इन्तेजार न कर, हवाओं का रुख मुड जायेगा ,
जो एक बूंद है गिरी सम्हाल ले उसे, तेज बारिस में मिल जायेगा,,,,,//
आज अचानक इन निगाहों में कोई अपना कहा से आ गया ,
पहचान ले जरा करीब से क्या कोई सपना कहीं से आ गया ,
क्या आवाज है ये प्यार की जो जीवन में ज्योति बनके आ रही ,
या कोई अहसास है बस, जो ख़ामोशी से मेरी आरज़ू बनके बहला रही,,,,,,//
----------- हरिकेश सिंह " अकेला "
www.harikeshakela.blogspot.com
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