बेस्ट बस के लेडी सीट पर ,बैठी थी इक भारी माल ,
एक कुवांरा बुरे नैनो से देख रहा था उसे आखें फार ,
पीछे मै था, आगे वो था, वो टपोरी था और मै सरीफ ,
वो पीछे से घिसक - घिसक कर जा रहा था उसके करीब,,,,,,,,,,,,//
भीड़ - भाड़ भी जोरो की थी ब्रेक ड्राईवर की थी कमान ,
आईटम तो थी बहुत मगर हट के थी कुछ वो सामान ,
जब गाडी की चाल बिगड़ती लड़की अपनी सीट पकड़ती ,
जब भी कोई लाईन मरता आँखे झुकाकर वो सर्माती ,,,,,,,,,,,,,,,,,/
उस लडके ने जब पर्पोज किया तब लड़की ने इग्नोर किया ,
जब बेसरम ने हाथ पकड़कर किस्स उसे बड़ा जोर किया ,
तब बड़े तमाचे पड़े हो भैया बेचारा पीटा बड़ा घोर गया ,
टांग हाथ सब टूट गए, भागकर वो अपने घर की ओर गया ,,,,,,,,,,,,,//
अगले स्टाप पर वो उतर गयी , निगाहें रुकी - सी रह गयी ,
सबने ही थे बड़े मजे लिए , तो थे हम भी कुछ कम नहीं ,
साम को जब मैं वापस आया बोला जाने कहा की है पर लड़की अच्छी थी ,
तब सुनकर दोस्त बोला अरे पागल वो तो अपने बाजुवाली की बच्ची थी ,,,,,,,,,,,,,,,,//
-------------- ( सराफत को कमजोरी न समझो ! )
लेखक ... हरिकेश सिंह " अकेला "
www.harikeshakela.blogspot.com
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