Tuesday 18 June 2013

( सराफत को कमजोरी न समझो ! )

बेस्ट बस के लेडी सीट पर ,बैठी थी इक भारी माल ,
एक कुवांरा  बुरे नैनो से देख रहा था उसे आखें  फार ,
पीछे मै  था, आगे वो था, वो टपोरी था और  मै सरीफ ,
वो पीछे से घिसक - घिसक  कर जा रहा था उसके करीब,,,,,,,,,,,,//

भीड़ - भाड़  भी जोरो की थी ब्रेक ड्राईवर की थी कमान ,
आईटम  तो थी बहुत मगर हट के  थी कुछ वो सामान ,
जब गाडी की चाल बिगड़ती लड़की अपनी सीट पकड़ती ,
जब भी कोई लाईन मरता आँखे झुकाकर वो सर्माती ,,,,,,,,,,,,,,,,,/

उस लडके ने जब पर्पोज किया तब लड़की ने इग्नोर किया ,
जब  बेसरम  ने हाथ पकड़कर किस्स उसे बड़ा जोर किया ,
तब  बड़े तमाचे पड़े  हो  भैया बेचारा पीटा  बड़ा घोर गया ,
टांग हाथ सब टूट गए, भागकर वो अपने  घर की ओर गया  ,,,,,,,,,,,,,//

अगले स्टाप पर वो उतर गयी , निगाहें रुकी - सी रह गयी ,
सबने ही थे बड़े  मजे लिए ,  तो  थे  हम भी कुछ कम नहीं ,
साम को जब मैं वापस आया बोला जाने कहा की है पर लड़की अच्छी थी ,
तब  सुनकर दोस्त बोला अरे पागल वो तो अपने बाजुवाली की बच्ची थी ,,,,,,,,,,,,,,,,//
                                                                    
                                                    -------------- ( सराफत को कमजोरी न समझो !  )


    लेखक ... हरिकेश  सिंह  " अकेला  "
                            www.harikeshakela.blogspot.com 

                       

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