Tuesday 27 August 2013
Tuesday 20 August 2013
Sunday 11 August 2013
अरे वाह, रश्म - रश्म बंधन का दस्तूर बना..
अरे वाह, रश्म - रश्म बंधन का दस्तूर बना ,
आज ये दिल मिला मन का भी फूल खिला,
अरमानो की डोली में बड़ी हशीन लग रही थी ,
गुमान था इतना तो क्यों इशारों में कह रही थी.........//
खुदा ने बड़ी मुद्दत से बनाया था उनको ,
उनकी तो अब हर ख़ामोशी में मुस्कान बनी,
पर उनको क्या खबर की उनके ही आशिकों में ,
आज हमारी भी छोटी सी इक कबरिस्तान बनी,.........//
आज फिर कोई अजनबी गली से गुजर गया ,
दिल मासूम उनकी यादों में ठहर गया,
पर अफसोस ये नहीं की वो चली गयी ,
अफसोस तो इस बात का है कि
कली तो वो कल थी यारों, ............
आज ही तो वो पूरा गुलिस्तान बनीं........//
हरिकेश सिंह " अकेला "
Saturday 10 August 2013
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