Sunday 11 August 2013

अरे वाह, रश्म - रश्म बंधन का दस्तूर बना..

अरे वाह, रश्म - रश्म बंधन का दस्तूर बना ,
आज ये दिल मिला मन का भी फूल खिला,
अरमानो की डोली में बड़ी हशीन लग रही थी ,
गुमान था इतना तो क्यों  इशारों में कह रही थी.........//

खुदा ने बड़ी मुद्दत से बनाया था उनको ,
उनकी तो अब हर ख़ामोशी में मुस्कान बनी,
पर उनको क्या खबर की उनके ही आशिकों में ,
आज हमारी भी छोटी सी इक कबरिस्तान बनी,.........//

आज फिर कोई अजनबी गली से गुजर गया ,
दिल मासूम उनकी यादों में ठहर गया,
पर अफसोस ये नहीं की वो चली गयी ,
अफसोस तो इस बात का है कि 
कली तो वो कल थी यारों, ............
आज ही तो वो पूरा गुलिस्तान बनीं........//

 

                          हरिकेश सिंह " अकेला "

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