Wednesday 18 June 2014

ऐ गुजरती ज़िन्दगी एहसास लाके दे।





ऐ गुजरती ज़िन्दगी एहसास लाके दे।  
क्या हुआ था ,क्यों हुआ था ,बात लाके दे।  
इन गरीबों की ख़ुशी वो रात लाके दे।  
सुन तड़पती आह को अब आस लाके दे। 
क्या हुआ था ,क्यों हुआ था, बात लाके दे। 
ऐ गुजरती ज़िन्दगी अहसास लाके दे। . 


हर सफर है रास्ता पर खो गयी मंज़िल।  
देख मुड़के तू जरा उसका कटता है कैसे दिन। 
है अँधेरी साम तो सहमा हुआ है दिल ,
है सफर गर ज़िन्दगी अंजाम ला के दे।
क्या हुआ था, क्यों हुआ था ,बात ला के दे। 
ऐ गुजरती ज़िन्दगी अहसास लाके दे।


देख कैसा हंस रहा है दूर से बैठा ,
ये गरीबों की हंसी है क्यों किया ऐसा।  
ज़िन्दगी बदनाम है क्यूँ , जा के उससे मिल।
है गरीबी शॉप तो इंसान लाके दे। 
क्या हुआ था ,क्यों हुआ था ,बात लाके दे। 
ऐ गुजरती ज़िन्दगी अहसास लाके दे।


 


लेखक---
                हरिकेश सिंह " अकेला "

Saturday 15 February 2014

हमारी दुनियां , हमारी प्राकृति

आँखों में ममता है तेरी ,
बातों में है प्यार छुपा ,
तू धरती कि रानी है ,
करुणा कि परछाई है। 

काया तेरी जैसे बिजली ,
तपन- सी है तेरी आहट ,
चमक पड़े जो बादलों में ,
मिल जाती ढेरों राहत।  

गर्मी तेरी एक तपन है ,
बहारों में खोया बरसात ,
शीत में शीलन तड़पती ,
घोर अँधेरी जब हो रात। 

बदल तेरे घुंघरू हैं ,
जो गर्जन में  गीत ,
मौसम तेरे रूप अनेक ,
रोता साथी गाते मीत। 

हरियाली श्रृंगार है तेरा ,
फूल है तेरे आभूषण के ,
रंग बदल के अम्बर भी ,
तुझको करता विभूषण में। 

मिटटी तेरी खुश्बू सींचती ,
नदियां राह हैं तेरे पग की ,
तेरे दमन में न दाग लगे ,
तू प्राकृति है मेरे जग की ,

                              लेखक 
  हरिकेश सिंह " अकेला "

Friday 14 February 2014

आँखों में सूरज -सी चमक ,
चंदा - सी  सूरत है तेरी ,
आगोश  भी मधुशाला है ,
फूलों - सी मूरत है तेरी। 

नयनों में कुछ गहराई ,
कुछ ख्वाब पलकों में छुपाई है ,
होंठो में मीठास का प्याला ,
साँसों में अंगड़ाई है। 

रंग सभी है प्यारे तुमको ,
किसी एक पर ना तू रह पायी है ,
पुष्प लाल गुलाब का ही क्यों ,
तेरे रूह को भाई है। 

कुछ ही दिनों में जान गया कि,
तू भी इक अनजान कहानी  है ,
हमराही है कुछ खास पालो की   ,
हर फरिस्ता मजहब कि दीवानी है। 


                            लेखक 
                  हरिकेश सिंह  " अकेला "

Sunday 9 February 2014

है ऐसे शांत क्यों बैठा कोई अंजाम आया क्या,ये आवाजे तो दूर कि हैं कोई पैगाम आया क्या ,रातें नम हैं तेरी भी गलती माफ़ कर देना ,मोहब्बत ये तो नहीं कहती किसी पर जान दे देना। .... 



                                  हरिकेश सिंह " अकेला  "

Friday 31 January 2014

किसी मासूम चेहरे की अदायें माफ़ ना करना ,

किसी मासूम चेहरे की
अदायें माफ़ ना करना ,

घटायें जुल्फ की होंगी
वफायें याद ना करना ,

हैं बड़ी कातिल नजर उनकी
निगाहें साथ न करना ,

कि नम होंगी जरा आँखे

"                 "

"                 "

सजायें  माफ़ ना करना …………… //


               

  ................................ हरिकेश सिंह " अकेला  "