आँखों में सूरज -सी चमक ,
चंदा - सी सूरत है तेरी ,
आगोश भी मधुशाला है ,
फूलों - सी मूरत है तेरी।
नयनों में कुछ गहराई ,
कुछ ख्वाब पलकों में छुपाई है ,
होंठो में मीठास का प्याला ,
साँसों में अंगड़ाई है।
रंग सभी है प्यारे तुमको ,
किसी एक पर ना तू रह पायी है ,
पुष्प लाल गुलाब का ही क्यों ,
तेरे रूह को भाई है।
कुछ ही दिनों में जान गया कि,
तू भी इक अनजान कहानी है ,
हमराही है कुछ खास पालो की ,
हर फरिस्ता मजहब कि दीवानी है।
लेखक
हरिकेश सिंह " अकेला "
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