Friday 14 February 2014

आँखों में सूरज -सी चमक ,
चंदा - सी  सूरत है तेरी ,
आगोश  भी मधुशाला है ,
फूलों - सी मूरत है तेरी। 

नयनों में कुछ गहराई ,
कुछ ख्वाब पलकों में छुपाई है ,
होंठो में मीठास का प्याला ,
साँसों में अंगड़ाई है। 

रंग सभी है प्यारे तुमको ,
किसी एक पर ना तू रह पायी है ,
पुष्प लाल गुलाब का ही क्यों ,
तेरे रूह को भाई है। 

कुछ ही दिनों में जान गया कि,
तू भी इक अनजान कहानी  है ,
हमराही है कुछ खास पालो की   ,
हर फरिस्ता मजहब कि दीवानी है। 


                            लेखक 
                  हरिकेश सिंह  " अकेला "

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