आँखों में ममता है तेरी ,
बातों में है प्यार छुपा ,
तू धरती कि रानी है ,
करुणा कि परछाई है।
काया तेरी जैसे बिजली ,
तपन- सी है तेरी आहट ,
चमक पड़े जो बादलों में ,
मिल जाती ढेरों राहत।
गर्मी तेरी एक तपन है ,
बहारों में खोया बरसात ,
शीत में शीलन तड़पती ,
घोर अँधेरी जब हो रात।
बदल तेरे घुंघरू हैं ,
जो गर्जन में गीत ,
मौसम तेरे रूप अनेक ,
रोता साथी गाते मीत।
हरियाली श्रृंगार है तेरा ,
फूल है तेरे आभूषण के ,
रंग बदल के अम्बर भी ,
तुझको करता विभूषण में।
मिटटी तेरी खुश्बू सींचती ,
नदियां राह हैं तेरे पग की ,
तेरे दमन में न दाग लगे ,
तू प्राकृति है मेरे जग की ,
लेखक
हरिकेश सिंह " अकेला "