Friday 12 July 2013

यही ज़िन्दगी है जो आनी जानी थी


मंजर - मंजर पनप रहा तू ,
पनपता वो हर रीत किसका है ,
संगीत खोजता हरपल है तू ,
तेरी धड़कन का गीत किसका है ......//

तरासा  हुआ एक हीरा है तू  .
किसके लिये क्यों  जीता है तू ,
कहाँ  गया फिर वो क्यों गया फिर ,
कहाँ  मिलेगा घिर बादल आये फिर.....//

कौन  कहाँ क्यों बिछड गया ,
तेरे आगोश के चितवन से ,
क्या ये वही  परवाना तो नहीं ,
जो लिपट रहा था हरपल तेरे उपवन से......//

मंजिल - मंजिल गुजर गया ,
हर गुलिस्ता भी तेरी दीवानी थी ,
फिर आएगा जो बीत गया दिन ,
यही ज़िन्दगी है जो आनी जानी थी ......//

           ..........( पतझड़  के बाद एक पुराने वृक्ष की दसा ..)


लेखक ....हरिकेश सिंह " अकेला "
http:/harikeshakela.blogspot.com




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