मंजर - मंजर पनप रहा तू ,
पनपता वो हर रीत किसका है ,
संगीत खोजता हरपल है तू ,
तेरी धड़कन का गीत किसका है ......//
तरासा हुआ एक हीरा है तू .
किसके लिये क्यों जीता है तू ,
कहाँ गया फिर वो क्यों गया फिर ,
कहाँ मिलेगा घिर बादल आये फिर.....//
कौन कहाँ क्यों बिछड गया ,
तेरे आगोश के चितवन से ,
क्या ये वही परवाना तो नहीं ,
जो लिपट रहा था हरपल तेरे उपवन से......//
मंजिल - मंजिल गुजर गया ,
हर गुलिस्ता भी तेरी दीवानी थी ,
फिर आएगा जो बीत गया दिन ,
..........( पतझड़ के बाद एक पुराने वृक्ष की दसा ..)
लेखक ....हरिकेश सिंह " अकेला "
http:/harikeshakela.blogspot.com
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