Saturday 27 July 2013

लहरें वहां उठती है , जहाँ नया सबेरा होता है

दुनिया बदल रही , बदल रहा जमाना है 
पूछते हो गैर क्या , यहाँ सब अपना बेगाना है ,
पाता है कोई क्या यहाँ , सबकुछ तो लुटाना है ,
इक रिश्ता है ये जिंदगी, आज है कल बीत जाना है ,............//

कल्पना की तस्वीर है सिर्फ , प्यार के  ये रास्ते ,
खोजता रहेगा दिल उस याद को , जीते हो जिसके वास्ते ,
जी भर के जी लो अभी , हर लम्हों की दीवानी को ,
काश बन जाता एक गुलिस्ता यहाँ, हर इक कहानी को,...........//

पत्थर का इन्सान है , तो आवाज कहाँ  से आएगी ,
सपनो में खो रहा तो , अंदाज कहा से आएगी ,
तड़पता वो दिल है ,जो सब कष्टों को झेला  होता है,
लहरें वहां उठती है , जहाँ नया सबेरा होता है ,.............//


   लेखक 
हरिकेश सिंह  "  अकेला  "

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