Tuesday 6 November 2012

दिल की गहराई

                                  दिल की गहराई 

कल को जो गुजरी कहर आखों में आंसू लिए 
कम ना हो सके वो सिक्वे वो गिले 
हम तो मुस्कुराते जा रहे थे 
लेकिन .............
पल्के छुपा रही थी कुछ कि कहि हम रो न दे   //.

सम्हालो लोगो हमें जोर  से  ,
जिंदगानी में छिपा कोई गहरा गम है 
चेहरे पे है हंशी मगर , ये आँखे तो नम है 
इस सायर की जुबा भी तो थोड़ी कम है 
जिंदगी के हर खिस्से सुनते जा रहे थे 
लेकिन .............
 पल्के छुपा रही थी कुछ कि कहि हम रो न दे   //.

मिठा सा सिला  दिलों में कोई कम न   दे
जो कुछ भी बचा है इस दिल में 
हंशाकर के  कही वो गम न दे  
मिन्नतें बहुत करके इस दिल को सम्म्हाले है हम 
परवाना बुलंदियों से गुजर आये है हम 
सागर किनारे यु ही गाते जा रहे थे  
लेकिन ...........
पल्के छुपा रही थी कुछ कि कहि हम रो न दे   //.

आशा है की इक रौशनी होगी कल को 
जो इस दिल के अंधेरो की ज्योति बनेगी 
जो जलती रहेगी सदियों तक  
ख्वाबो में नहीं वो हकीकत की मेरी हो के  बनेगी 
पाकर उसे मै जी लूँगा इस दुनिया को इकपल 
गहराइ है बहुत  ,  इस दिल की देखो  हरपल 
देखा हमने साथ सबके उन आखो की दहक 
उन जल्ती  निगाहों में युहीं खोये थे हम 
लेकिन .................
पल्के छुपा रही थी कुछ कि कहि हम रो न दे   //.

पर क्या हर सपना पूरा होता 
यहि सोच के ये दिल घबराता'है 
लेकिन मुझे कल राहों में अकेले यूँही 
जलती हुई इक रौशनी मिली जो बोली
" हरिकेश " तेरी तन्हाईयाँ बिखर रही है 
मेरे साथ जरा दूर जा के देख 
ये राहे  है तेरी ये जिंदगी है तेरी ,..........वो खुशियाँ भी तो तेरी ही  है 
हस्ता हुआ इक कल है तेरा इन्हें बस पार करके तो देख 
यही सच है , ख़ुशी मिली ,आशाओं ने घेरा हमको
 लेकिन ......................
पल्के छुपा रही थी कुछ कि कहि हम रो न दे   //.

      लेखक .....................
हरिकेश  सिंह " अकेला  "
harikeshakela.nit.iim@gmail.com 

लेखक की कलम को पाए ................www.harikeshakela.blogspot.in   पर..  



No comments:

Post a Comment