इक सपना तो होगा इस दिल का
अकेले में गा रहे क्यों रो रहे हो महफ़िलो में ,
दुनिया बुरी नहीं है क्यों चल पड़े हो दारियो में ,
इन राहों में तेरे बहो में कौन है पनपता यूँ ,
क्यों दहकता है आग सा तू , क्या कहर थी बीते दिनों में //
तेरे आँखों में जो है झलकता हरपाल वो ख्याल किसका है ,
जो मंजिलो के बीच भी तुझे हरपल है सता रहा ,
ऐ हरिकेश जा लौट जा फिर उन्ही वादियों में ,
कही कोसो से है कोई तो अपना तुझे बुला रहा //
तेरा मासूम दिल है सम्हल जायेगा .
तेज धड़कने भी थम जाएँगी ,
पर क्या तू रुक पायेगा ,
तेरी नजरें छुपा पायेंगी //
हरिकेश यादों में जीते नहीं ,
भूल गए सब जो कल को थे बीते कहीं ,
फरियाद नहीं करता है दिल बेचैन होकर ,
अभी जो जागा है ये वर्सो से सोकर //
इक तमन्ना , इक ख्वाब है दिल का ,
ज्योति का जलता चिराग है दिल का ,
महक जाती है खुशबु गुलाब की भी ,
मगर परछाईयो में भी भींगता जुलाब है दिल का //
कोई भी अपना नहीं होता भी तो क्या कम है ,
लहू - सा बन आंसू निकल पड़े तो क्या गम है ,
अपना सब नजर आ रहा है यहाँ कोसो तक मगर
दिल चाहता है क्या , इसे अभी क्या कम है //
कहता है दिल मुझे किसी खास का है इंतिजार ,
जो आ रहा है कही दूर से लेके मेरा बरसो का प्यार ,
बहुत सताया है हरिकेश , जिंदगी ये जमाना मुझे ,
खुसियां तो फीकी पड़ी , गम भी नहीं है हाथ ,
होता कोई मतवाले फिरते सबनम ले - लेते साथ .....//
( यह दिल भी क्या चीज है जो बरसो की यादे लेकर राहों में निकल पड़ता है ,
किसी अनजानी मंजिल की तलास में सिर्फ इक सपने और इक हौसले के दम पर // )
लेखक ........
हरिकेश सिंह " अकेला "
harikeshakela.nit.iim@gmail.com
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